फुलन देवी की कहानी एक जातीय और स्त्री संघर्ष की कहानी है जिसे हम सभी को जानना चाहिए।


फूलन देवी, हम में से बहुत से लोगों ने यह नाम पहले भी सुना होगा, आज फूलन देवी की मौत को 20 साल बीत चुके हैं, 25 जुलाई 2001 को फूलन देवी को उसके ही घर के बाहर गोली से मारकर हत्या कर दी गई थी, फुलन देवी की कहानी एक जातीय और स्त्री संघर्ष की कहानी है जिसे हम सभी को जानना चाहिए।


10 अगस्त 1963 को यूपी के गांव गोरहा में जन्म लेने वाली फूलन देवी शुरू से ही उंची जातियों द्वारा भेदभाव का शिकार होती रहीं। 11 साल की उम्र में फूलन देवी को गांव से बाहर भेजने के लिए उसके चाचा मायादीन ने फूलन की शादी बूढ़े आदमी पुट्टी लाल से करवा दी। हालांकि, कम उम्र की वजह से फूलन देवी उस शादी के लिए तैयार नहीं थी। शादी के तुरंत बाद ससुराल में प्रताड़ना की वजह से एक दिन वो अपने घर भागकर आ गईं।

घर आकर फूलन ने अपने पिता के साथ मजदूरी में हांथ बंटाना शुरु कर दिया। लेकिन, शादी के बाद घर से भागने पर लोगों ने बिना जाने ही उसपर कई तरह के आरोप लगाने शुरु कर दिये। लोगों द्वारा छेड़छाड़ और परेशान करने की घटनाएं आम होने लगीं। जब फूलन 15 साल की थी, तब उसके जीवन का सबसे बड़ा हादसा उसपर से गुजरा। गांव में रहने वाले ठाकुरों ने उनके साथ गैंगरेप किया।

इस घटना को लेकर फूलन न्याय के लिए भटकती रही, पर उसे कहीं से भी न्याय नहीं मिला। अंत में फूलन ने बंदूक उठाकार खुद को खुद ही न्याय दिलाने का फैसला ले लिया। तभी फूलन की मुलाकात विक्रम मल्लाह से हुई, जिसके बाद दोनों ने मिलकर डाकूओं का अलग गैंग बनाया। फूलन अपने साथ हुए गैंगरेप का बदला लेने की ठान ली और 1981 में 22 सवर्ण जाति के लोगों को एक लाइन में खड़ा कराकर गोलियों से छलनी कर दिया। इसके बाद पूरे चंबल में फूलन देवी का खौफ छाया रहा।

इस घटना को अंजाम देने के बाद सरकार द्वारा फूलन को पकड़ने के आदेश जारी किये गए, लेकिन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश पुलिस फूलन देवी को पकड़ने में नाकाम रही। हालांकि, बाद में तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से 1983 में फूलन देवी से सरेंडर करने को कहा गया, जिसे फूलन ने कुछ शर्तों के साथ मान लिया।

फूलन देवी को 11 साल तक बिना मुकदमे के जेल में रहना पड़ा। जिसके बाद 1994 में समाजवादी सरकार ने फूलन को जेल से रिहा किया और इसके दो साल बाद ही फूलन को समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने का ऑफर मिला और वो मिर्जापुर सीट से जीतकर सांसद बनी और दिल्ली पहुंच गई। जिसके बाद साल 2001 खुद को राजपूत गौरव के लिए लड़ने वाला योद्धा बताने वाले शेर सिंह राणा ने दिल्ली में फूलन देवी के आवास पर उनकी हत्या कर दी।


फुलन देवी आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी ये संघर्ष की कहानी आज भी हमें प्रेरणा देती है और उन लोगों को चेतावनी जो आज भी जाती का रौब दिखाते है और महिलाओं को एक दोयम दर्जे का नागरिक मानते है।
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