माफ करें मोदी जी, आप जिस 130 करोड़ लोगों की दुहाई अपने भाषण में देते रहते है, मैं उनमें से नहीं हूं मैं आपके साथ नहीं हूं, मैं हत्यारों के साथ नहीं हूं।

माफ करें मोदी जी, आप जिस 130 करोड़ लोगों की दुहाई अपने भाषण में देते रहते है, मैं उनमें से नहीं हूं मैं आपके साथ नहीं हूं, मैं हत्यारों के साथ नहीं हूं।

आज़ाद भारत में पहली बार ये मौका है जब एक प्रधानमंत्री द्वारा किसी अपराध को सेलिब्रेट किया जा रहा हो, वैसे ये भी पहली बार है जब कोई नरसंहार(हत्या) के आरोपी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा हो।

आज सवाल ये नहीं कि मंदिर का शिलान्यास किया जा रहा है, सवाल है भारती लोकतंत्र का। 

आजाद भारत में एक ढांचा(मस्जिद) को तोड़ा जाता है, जिसके बाद सेकड़ों बार न्यायालय में सुनवाई चलती है। जिसमें सैकड़ों लोग दोशी ठहराये जाते है, जिन्हें आज तक सजा नहीं हुई है। अंत में सबूत के अभाव में एक पक्ष को यहां मंदिर बनाने की इजाजत मिलती है और दूसरे को पक्ष को दूसरे स्थान पर।

आप इसे लोकतंत्र का दुर्भाग्य कहें या फिर, लोकतंत्र का ढहना ये आप पे डिपेंड करता है, लेकिन सच्चाई यहीं है कि आज न सिर्फ लोकतंत्र की हार हुई है बल्कि उन सभी संस्थानों की हार जो लोगों की न्याय दिलाने का दंभ भरती है। लोगों का न्यायालय से भरोसा उठाना अब लाजिमी है।

ऐसा न हो लेकिन उदाहरण के तौर पर कल अगर प्रधानमंत्री मोदी जो आज शिलान्यास कर रहे थे, उनकी हत्या हो जाती है और हमें मालूम हो कि हत्यारा कौन है लेकिन वो न्यायालय से सबूत के अभाव में बरी हो जाता है तो क्या हम उसे हत्यारा नहीं कहेंगे? ये आज सवाल है हमारे सामने। 

अगर प्रधानमंत्री की हत्या करने वाला हत्यारा है तो आज ढांचा(बाबरी मस्जिद) तोड़ने वाला भी हत्यारा है।

आज सभी विपक्षी पार्टियों और बुद्धिजीवियों को भी ध्यान से देखें जो तथाकथित अपने-आपको सेकुलर होने का दावा करती है, वो आज या तो मंदिर के पक्ष में है या फिर खामोश है।

आज जब सब खामोश है और प्रधानमंत्री मोदी 130 करोड़ लोगों को अपने साथ होने की बात कर रहे है तो मैं उन्हें साफ-साफ बता देना चाहता हूं कि "मोदी जी होगें आपके साथ करोड़ों लोग लेकिन मैं उन 130 करोड़ में नहीं हूं जो आपके साथ हो" इसलिए आप अपने साथ 130 करोड़ होने की बात न कहें।

माफ करें मैं हत्यारों के साथ नहीं हूं, राष्ट्रीय शर्मनाक दिवस मुब़ारक हो आप सभी को !

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